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तीन वर्षों में सरकार का विज्ञापन खर्च कम नहीं हुआ, लघु और भाषाई प्रकाशनों को आर्थिक रूप से गला घोटा


केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय का कहना है कि बीते तीन वर्ष में मीडिया विज्ञापनों पर सरकार ने कम खर्च किया है। हो सकता है कि उनके हिसाब से यह सही हो लेकिन आॅल इंडिया न्यूज पेपर एसोसिएशन आईना के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में मेरा मानना है कि विज्ञापनों पर कम खर्च नहीं हुआ। 


सरकार ने देशभर के जनपदों और कस्बों से निकलने वाले लघु और भाषाई समाचार पत्रों को मिलने वाला विज्ञापन लगभग समाप्त कर यह खर्च कम दिखाया है जिससे इस श्रेणी के समाचार पत्र संचालकों के समक्ष अनेको कठिनाई तो उत्पन्न हुई ही हैं। कहे अनकहे रूप में इनके वजूद को समाप्त करने की मुहिम ही यह एक हिस्सा हो सकता है।



पिछले तीन साल के दौरान प्रिंट, इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल मीडिया में विज्ञापनों पर सरकार की ओर से किया जाने वाला खर्च लगातार कम हुआ है। प्रिंट मीडिया में लगभग 54 प्रतिशत की गिरावट आई है। सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने गत दिवस राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। 


सूचना-प्रसारण मंत्री द्वारा संसद में प्रस्तुत किए गए नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने लोक संपर्क और संचार ब्यूरो (बीओसी) के जरिए 2018-19 में प्रिंट विज्ञापनों में 429.55 करोड़ रुपए खर्च किए थे, जो 2019-20 में घटकर 295.05 करोड़ रुपए हो गया और 2020-21 में महामारी के दौरान घटकर 197.49 करोड़ रुपए रह गया है।


बीजद सांसद सस्मित पात्रा द्वारा उठाए गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में ठाकुर ने कहा कि इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल मीडिया पर विज्ञापन खर्च में भी पिछले तीन वर्षों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। ठाकुर ने बताया कि वर्ष 2018-2019 में इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल मीडिया में विज्ञापनों पर सरकार ने 514.29 करोड़ रुपए खर्च किए थे। 


वर्ष 2019-2020 में सरकार की ओर से इलेक्ट्राॅनिक और डिजिटल मीडिया में विज्ञापनों पर 316.99 करोड़ रुपए और 2020-2021 में 167.98 करोड़ रुपए खर्च किए गए। सरकार द्वारा विज्ञापनों पर खर्च में कमी तब देखने को मिल रही है, जब प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री महामारी के गंभीर परिणामों से बचने के लिए संघर्ष कर रही है।
केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री खर्च कम करने के आंकड़ें देने के साथ साथ अगर यह भी बता देते कि जो बजट खर्च किया गया है वो कौन से समाचार पत्रों और किन घरानों के बड़े संस्करणों को दिया गया है तो स्थिति स्पष्ट हो जाती कि सरकार खर्च कम करने के नाम पर आर्थिक रूप से किसका गला घोंट रही है और किन्हें बढ़ावा दे रही है।


 प्रधानमंत्री जी हर क्षेत्र में छोटे और लघु और मध्यम दर्ज के व्यक्तियों को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन सूचना मंत्रालय ने बीते तीन चार वर्षों में ज्यादातर लघु और भाषाई समाचार पत्रों को दिए जाने वाली विज्ञापन नीति का उल्लंघन कर इस श्रेणी के समाचार पत्रों बंद होने के कगार पर पहुंचा दिया है। और यह सब आईना के अनुसार डीएवीपी के अधिकारियों की सलाह पर बिना सोचे समझे विचार करने का परिणाम ही कहा जा सकता है।

– रवि कुमार विश्नोई
सम्पादक – दैनिक केसर खुशबू टाईम्स
अध्यक्ष – ऑल इंडिया न्यूज पेपर्स एसोसिएशन
आईना, सोशल मीडिया एसोसिएशन (एसएमए)
MD – www.tazzakhabar.com

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